
भारत में कोरोना वायरस की दूसरी काफी भयावह रही है। 18 वर्ष से अधिक आयु और 45 वर्ष से अधिक आयु वालों पर इसका काफी गहरा असर रहा है। लेकिन यह वेरिएंट क्या है? कैसे बार-बार और तेजी से म्यूटेंट हो रहा है। जिसे डायग्नोस करना एक बहुत बड़ा चैलेंज साबित हो रहा है। दूसरी लहर में डेल्टा वेरियंट को बड़ी वजह बताया गया है और अब डेल्टा प्लस वेरिएंट सामने आया है।
बेंगलुरु के डॉक्टरों ने 74 वर्षीय अफगानी मरीज का जटिल इलाज करने में सफलता पाई है. उसमें किडनी में ट्यूमर के साथ एसोफेगस के दूसरे चरण का कैंसर यानी भोजन नली के कैंसर की पहचान हुई थी. हालांकि एसोफेगस के कैंसर सामान्य हैं, लेकिन फोर्टिस अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि मेडिकल इतिहास में डबल कैंसर का मामला शायद ही कभी दर्ज किया गया है. मरीज सात महीने से खाना निगलने में अक्षम था. उसके पेट में पाइप दाखिल कर भोजन पहुंचाया जा रहा था.
डॉक्टरों ने डबल कैंसर का किया सफल इलाज
मरीज को कीमोथेरेपी के साथ तत्काल सर्जरी करने की जरूरत थी. डॉक्टरों की टीम ने उसकी अधिक उम्र और सर्जरी करने की प्रक्रिया में शामिल जोखिम कारकों को देखा. उसके बाद एक साथ दोनों कैंसर का इलाज करने के लिए एक ही एनेस्थीसिया देने का फैसला किया. फोर्टिस कैंसर इंस्टीट्यूट ने बयान में कहा, “एसोफेगस कैंसर के मरीजों के लिए कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी सर्जरी से पहले महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. कैंसर का फैलाव और बीमारी को रोकने के लिए शुरुआती इलाज के तौर पर हमने कीमोरेडिएशन का विकल्प अपनाया. एक सर्जरी की तुलना में कीमोरेडिएशन बेहतर परीक्षण परिणामों के साथ जीवित रहने की दर को भी सुधारती है.
74 वर्षीय अफगानी बुजुर्ग रोगी में हुई थी पहचान
कीमोरेडिएशन थेरेपी पूरा होने के बाद आगे उसकी जरूरत रोबोटिक ओसोफेगोस्टॉमी के लिए समझा गया, लेकिन जैसा कि उसके अंदर किडनी के ट्यूमर का पता चला था, इसलिए उस पर रोबोट समर्थित आंशिक नेफरेक्टोमी एक ही समय में किया गया.” ओसोफेगोस्टॉमी के जरिए डॉक्टरों ने पेट के ऊपरी हिस्से के साथ एसोफेगस का ट्यूमर, शरीर में कैंसर के फैलाव की रोकथाम के लिए लिम्फ नोड्स यानी शरीर में गांठ हटाई. अस्पताल ने बयान में बताया कि आम तौर से इस तरह की प्रक्रियाओं में मरीज को सांस की दिक्कत की संभावना होती है, लेकिन उस पर रोबोट समर्थित प्रक्रिया को किया गया था, इसलिए सर्जरी के बाद की जटिलताएं कम हो गईं. मरीज अब भोजन को बिना किसी परेशानी के निगलने में सक्षम है.
भारत में कोरोना वायरस की दूसरी काफी भयावह रही है। 18 वर्ष से अधिक आयु और 45 वर्ष से अधिक आयु वालों पर इसका काफी गहरा असर रहा है। लेकिन यह वेरिएंट क्या है? कैसे बार-बार और तेजी से म्यूटेंट हो रहा है। जिसे डायग्नोस करना एक बहुत बड़ा चैलेंज साबित हो रहा है। दूसरी लहर में डेल्टा वेरियंट को बड़ी वजह बताया गया है और अब डेल्टा प्लस वेरिएंट सामने आया है।
आइए जानते हैं क्या कहा –
डेल्टा प्लस वेरिएंट क्या है?
शुरू से हमने कोविड को देखा है यह स्पाइक प्रोटीन में होता है। यह इंसान के अंदर जाकर कोशिकाओं में संक्रमण को फैलाता है। और वायरस की टेंडेंसी होती है वह बदलाव करता रहता है। पहले डेल्टा अल्फा था B.1.617.1। इसके बाद दूसरी लहर आई। जिसमें डेल्टा वेरिएंट देखा गया जो बहुत ज्यादा प्रभावी रहा। डेल्टा वेरिएंट B.1.617.2 भी रहा। नया डेल्टा वेरिएंट 63 म्यूटेंट के साथ आ रहा है। वहीं अब नया म्यूटेशन कोड हो रहा है। उसका नाम है K 417n।
जब हम किसी म्यूटेशन की बात करते हैं वह एंटीजन किस लोकेशन पर म्यूटेंट हो रहा है और जिनोमिक म्यूटेशन किस जगह पर हुआ है वह एक नंबर होता है। उसका प्रोटीन सीक्वेंस क्या है वह कैसे म्यूटेंट करता है। तो उसे प्री और पोस्ट के आधार पर विश्लेषण करते हैं।
डेल्टा वेरिएंट की बात की जाए तो वैक्सीन उस पर असरदार है। साथ ही जिन्हें कोविड हुआ है उनमें एंटीबॉडी बन गई है उन पर भी। पर जो नया म्यूटेशन आ रहा है और जो एंटीबॉडी अंदर बनी है वह कितनी असरदार है उस पर रिसर्च जारी है।
अगर एंटीबाॅडी नए वेरिएंट के सामने काम नहीं करती है तो इंफेक्शन का खतरा बढ़ेगा। हालांकि अभी इसके केस कम ही सामने आए है।
आज के वक्त नए वेरिएंट को पहचानने के लिए अधिक से अधिक सीक्वेंसिंग करने की जरूरत है। सीक्वेंसिंग की मदद से डायग्नोस करके जल्द से जल्द उपचार शुरू किया जा सकता है।
भारत में सीक्वेंसिंग को लेकर किस तरह की तैयारी है?
भारत में बहुत कम सीक्वेंसिंग है। अधिकतर पुणे, नई दिल्ली में है। हालांकि मप्र में अभी अनुमति नहीं दी गई है लेकिन सेम्स में जल्द ही सीक्वेंसिंग शुरू की जा सकती है। इसकी मदद से वैरियंट्स को देखने में आसानी हो जाएगी। वर्तमान में एनआईवी पुणे में ही अधिकतम सीक्वेंसिंग हो रही है।
डेल्टा प्लस वेरिएंट तीसरी लहर है?
यह संभावना हो सकती है। वैक्सीन लगने के बाद शरीर में एंटीजन के खिलाफ एंटीबॉडी बनती है। जिससे कोई बीमारी शरीर में आती है तो उससे लड़ सकते हैं। अपने अंदर एंटी बाॅडी विकसित हो गई है और नया वायरस है उस पर काम नहीं करता है तो यह तीसरी लहर बन सकती है। हालांकि इस पर अभी गहन रिसर्च जारी है। तो पहले से नहीं कहा जा सकता है कि नए वायरस पर एंटीबॉडी काम कर रही है या नहीं।
डेल्टा प्लस वेरिएंट बाॅडी के किन हिस्सों को अधिक प्रभावित करता है?
यह श्वसन तंत्र (रेस्पिरेटरी ट्रैक) और पेट में इंफेक्शन (जीआई ट्रेक) को ज्यादा प्रभावित करते हैं।
बच्चों पर भी प्रभावी रहेगा?
बच्चों की एंटीबॉडी स्ट्रांग रहती है। जो भी म्यूटेशन हो रहा है बच्चे उसे एडोप्ट कर लेते हैं। अगर वह नए वेरिएंट एडॉप्ट नहीं करते हैं तो कहीं न कहीं यह नया वेरिएंट खतरनाक हो सकता है। लेकिन अभी रिसर्च जारी है। इसलिए यह कहना संभव नहीं है कि वह बच्चों पर कितना प्रभावी रहेगा।
डेल्टा प्लस वेरिएंट में किस तरह की सावधानी रखें?
लोग यहीं नहीं सोचे की वैक्सीन लग गया है तो उन्हें कुछ नहीं होगा। अभी रिसर्च जारी है। एंटीबॉडी आपके अंदर विकसित हुई और वह एंटीजन उस पर काम नहीं करता है तो रिइंफेक्ट भी हो सकता है। मास्क पहने, सोशल डिस्टेंसिंग रखें। क्योंकि कोविड ट्रांसफार्म बीमारी है। इम्यूनिटी पर भी निर्भर करता है। जिसकी प्रतिरोधक क्षमता कम है उनके लिए घातक साबित हो सकती है