सारांश : अक्टूबर 2024 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपये को डॉलर के मुकाबले स्थिर रखने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में 44.5 अरब डॉलर का हस्तक्षेप किया। विदेशी निवेशकों की भारी निकासी और डॉलर की बढ़ती मांग के बावजूद, आरबीआई के कदमों से रुपये की गिरावट को नियंत्रित किया गया।
अक्टूबर 2024 में भारतीय रुपये की स्थिति चिंताजनक हो गई थी। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य 85.15 तक पहुंच गया था, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने स्पॉट और फॉरवर्ड करेंसी मार्केट में 44.5 अरब डॉलर का उपयोग किया। आरबीआई के इस कदम ने रुपये को अधिक गिरावट से बचा लिया।
विदेशी निवेशकों की निकासी का प्रभाव:
अक्टूबर के दौरान, विदेशी निवेशकों (एफआईआई) ने भारतीय शेयर बाजार से 10.9 अरब डॉलर निकाले। इसके साथ ही, अमेरिकी डॉलर की मांग में भारी वृद्धि हुई। इस आर्थिक दबाव के बावजूद, रुपये की कीमत में केवल 30 पैसे की गिरावट आई और यह महीने के अंत में 84.06 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ। यह आरबीआई के बाजार हस्तक्षेप का प्रत्यक्ष परिणाम था।
आरबीआई का रणनीतिक हस्तक्षेप:
आरबीआई ने रुपये को स्थिर रखने के लिए स्पॉट बाजार में 9.3 अरब डॉलर और फॉरवर्ड बाजार में 35.2 अरब डॉलर की बिक्री की। इसके जरिए विदेशी मुद्रा की उपलब्धता बढ़ाई गई और डॉलर की मांग को पूरा किया गया।
डॉलर की बढ़ती कीमत:
अक्टूबर के महीने में अमेरिकी डॉलर के दाम में 3.2% की वृद्धि दर्ज की गई। वहीं, उभरते हुए बाजारों की मुद्राएं औसतन 1.6% गिर गईं। इसके बावजूद, भारतीय रुपये को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। आरबीआई के सक्रिय कदमों ने भारतीय मुद्रा को स्थिर बनाए रखा।
नवंबर में हस्तक्षेप की संभावना:
विशेषज्ञों का मानना है कि नवंबर में भी आरबीआई ने डॉलर की बिक्री जारी रखी। इस महीने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने भारतीय वित्तीय बाजारों से 2.4 अरब डॉलर की निकासी की। ब्याज दरों में वृद्धि और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के कारण निवेशकों ने जोखिम भरे क्षेत्रों से अपना पैसा हटाना शुरू किया।
गिरावट के अन्य कारण:
जुलाई-सितंबर तिमाही में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 18 महीनों के निचले स्तर 5.4% पर आ गई। इसके साथ ही, शेयर बाजार में एफआईआई द्वारा 1.16 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेचे गए। इन गतिविधियों से रुपये पर दबाव बढ़ा और इसकी कीमत में गिरावट आई।
आरबीआई के कदमों का महत्व:
आरबीआई का हस्तक्षेप इस बात का प्रमाण है कि केंद्रीय बैंक संकट के समय में सक्रिय भूमिका निभाता है। अगर अक्टूबर में यह कदम नहीं उठाए गए होते, तो रुपये की स्थिति और खराब हो सकती थी। बाजार में डॉलर की बढ़ती मांग को पूरा करना और विदेशी निवेशकों की निकासी के प्रभाव को कम करना, आरबीआई की प्राथमिकता रही।
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