सारांश : संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान संविधान पर चर्चा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह के आंबेडकर पर दिए गए बयान ने विपक्ष को नाराज कर दिया। वहीं, लोकसभा में वन नेशन, वन इलेक्शन बिल पर भी चर्चा हुई, जिसे डिवीजन के बाद जेपीसी को भेज दिया गया।
संसद में हंगामा : आंबेडकर पर अमित शाह के बयान को लेकर विपक्ष का विरोध
भारत की संसद में इन दिनों चल रहे शीतकालीन सत्र में कई अहम मुद्दों पर चर्चा हो रही है। हाल ही में, संविधान पर हुई चर्चा के दौरान राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान ने संसद में हलचल मचा दी। शाह के बयान को लेकर विपक्षी दलों ने कड़ी आपत्ति जताई और इस पर तीव्र विरोध किया। वहीं, लोकसभा में भी एक महत्वपूर्ण बिल पर चर्चा हुई, जिसका असर आने वाले दिनों में भारतीय चुनावी प्रणाली पर पड़ सकता है।
लोकसभा में संविधान पर चर्चा: प्रधानमंत्री मोदी का उत्तर
लोकसभा में संविधान पर हुई चर्चा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने विचार साझा किए। प्रधानमंत्री मोदी ने संविधान को भारतीय लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ बताया और इसके महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेदों और उनके पालन की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि देश में न्याय और समानता कायम रह सके।
प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान भारत की विविधता और समावेशिता को दर्शाता है और यही इसके वास्तविक उद्देश्य को पूरा करता है। उनका यह भी कहना था कि यह भारतीय समाज के हर वर्ग को समान अधिकार और अवसर प्रदान करता है। इस दौरान प्रधानमंत्री ने संविधान की निर्माता भूमिका को भी अहम बताया, जिसमें डॉ. भीमराव आंबेडकर की विशेष भूमिका थी।
राज्यसभा में अमित शाह का बयान और विपक्षी प्रतिक्रिया
वहीं, राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने संविधान पर अपनी बात रखी। शाह ने डॉ. आंबेडकर के योगदान को मान्यता देते हुए संविधान की महत्ता पर जोर दिया। हालांकि, शाह के बयान का एक हिस्सा विपक्ष के लिए विवादास्पद साबित हुआ। शाह के अनुसार, संविधान निर्माण में डॉ. आंबेडकर का योगदान अद्वितीय था, लेकिन इसके बाद उन्होंने कुछ ऐसे बयानों का उल्लेख किया, जिन्हें विपक्ष ने गलत तरीके से लिया।
विपक्षी नेताओं का आरोप था कि शाह के बयान में आंबेडकर के योगदान को लेकर कुछ संकीर्ण दृष्टिकोण था, और उन्होंने इसे नकारात्मक रूप से प्रस्तुत किया। इस पर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध जताया। विपक्ष ने इसे आंबेडकर के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी माना और इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया।
विपक्ष की आलोचना: मेघवाल का बयान
राज्यसभा में विपक्ष की ओर से सबसे तीव्र प्रतिक्रिया मेघवाल के बयान से आई, जिन्होंने कहा कि शाह का बयान न केवल गलत था, बल्कि यह आंबेडकर के विचारों और उनके संघर्ष को तिरस्कार करने जैसा था। मेघवाल ने कहा कि “इनसे तो बेहतर होता कि वे चुप रहते।” उनके इस बयान के बाद सदन में हंगामा खड़ा हो गया। विपक्षी दलों ने इस बयान पर विरोध जताते हुए संसद में जमकर नारेबाजी की और गृह मंत्री से माफी की मांग की।
लोकसभा में वन नेशन, वन इलेक्शन पर चर्चा
वहीं, मंगलवार को लोकसभा में वन नेशन, वन इलेक्शन बिल पर चर्चा शुरू हुई। यह बिल भारतीय चुनावी प्रणाली को एक साथ लाने की दिशा में एक अहम कदम है, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने का प्रस्ताव है।
सत्ता पक्ष का मानना है कि इस तरह से चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जा सकता है और इससे चुनावी खर्च में कमी आएगी। साथ ही, सरकारी मशीनरी पर दबाव भी कम होगा। हालांकि, विपक्षी दलों ने इस बिल का विरोध किया। उनका कहना था कि यह लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है और इससे राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप हो सकता है।
लोकसभा में इस बिल पर डिवीजन वोटिंग हुई और अंत में इसे जॉइंट पार्लियामेंट्री कमिटी (जेपीसी) को भेज दिया गया, जहां इस पर और विस्तार से विचार किया जाएगा।
संसद की कार्यवाही में विवाद और राजनीति
इन दोनों मुद्दों के बीच संसद में विवाद और राजनीति का माहौल गरमाता जा रहा है। विपक्ष ने एक ओर जहां अमित शाह के आंबेडकर पर दिए गए बयान को लेकर सरकार से माफी की मांग की, वहीं दूसरी ओर वन नेशन, वन इलेक्शन बिल को लेकर भी कड़ा विरोध दर्ज किया। इस दौरान दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस और हंगामा देखा गया, जिसने संसद की कार्यवाही को प्रभावित किया।
सत्ता पक्ष का कहना है कि यह दोनों मुद्दे देश के लिए अहम हैं और इन पर पूरी गहराई से चर्चा की जानी चाहिए। भाजपा के नेताओं का कहना है कि शाह का बयान किसी भी रूप में आंबेडकर के योगदान का अपमान नहीं था, बल्कि यह संविधान की महत्ता को रेखांकित करने का प्रयास था।
निष्कर्ष: संविधान पर चर्चा और राजनीतिक विरोध की स्थिति
संसद में इन दिनों संविधान पर हो रही चर्चा और उसके बाद आए विवाद ने राजनीतिक वातावरण को गर्म कर दिया है। आंबेडकर पर अमित शाह के बयान ने जहां विपक्ष को नाराज किया, वहीं वन नेशन, वन इलेक्शन बिल पर भी बहस जारी है। ये दोनों मुद्दे न केवल संसद की कार्यवाही पर असर डाल रहे हैं, बल्कि भारतीय राजनीति में भी नए विवादों को जन्म दे रहे हैं।
देश की संविधान पर इस तरह की चर्चा और बहस से यह साफ हो गया है कि भारतीय राजनीति में संविधान, लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया पर किसी भी प्रकार की बहस कभी खत्म नहीं होती। आने वाले दिनों में इन मुद्दों पर और भी तीव्र बहस और राजनीतिक गतिविधियां देखने को मिल सकती हैं।
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