सारांश: 1 अप्रैल 2024 से राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) ने आवश्यक दवाओं की कीमतों में वृद्धि करने का फैसला किया है। इस बढ़ोतरी से कैंसर, डायबिटीज, हृदय रोग और एंटीबायोटिक्स जैसी कई महत्वपूर्ण दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी। मुद्रास्फीति के प्रभाव और थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में वृद्धि के कारण सरकार ने यह कदम उठाया है। इससे लाखों मरीजों की जेब पर असर पड़ेगा, खासकर बुजुर्गों और क्रॉनिक बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए यह अतिरिक्त बोझ होगा।
1 अप्रैल से दवाओं के दाम में बढ़ोतरी, मरीजों को बड़ा झटका
देशभर के मरीजों को 1 अप्रैल 2024 से जरूरी दवाओं के बढ़े हुए दामों का सामना करना पड़ेगा। सरकार के राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) ने आवश्यक दवाओं की कीमतों में 1.7% तक की वृद्धि करने का निर्णय लिया है। यह बढ़ोतरी मुद्रास्फीति और बढ़ती उत्पादन लागत को ध्यान में रखते हुए की गई है।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस मूल्य वृद्धि से मरीजों को सालाना लगभग 3,788 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ेगा। कैंसर, डायबिटीज, हृदय रोग और एंटीबायोटिक्स जैसी महत्वपूर्ण दवाएं इस बढ़ोतरी से प्रभावित होंगी।
क्यों बढ़ाई जा रही हैं दवाओं की कीमतें?
NPPA के अनुसार, दवाओं की कीमतों में यह संशोधन मुद्रास्फीति आधारित मूल्य संशोधन के तहत किया गया है। सरकार हर साल आवश्यक दवाओं के दामों को संतुलित करने के लिए मूल्य निर्धारण नीति में बदलाव करती है। इस बार थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में बढ़ोतरी हुई है, जिसके कारण दवा कंपनियों को कीमतें बढ़ाने की अनुमति दी गई है।
इस बढ़ोतरी के प्रमुख कारण:
- मुद्रास्फीति में वृद्धि: देश में बढ़ती महंगाई के कारण दवा उत्पादन की लागत बढ़ रही है।
- कच्चे माल की ऊंची कीमतें: कई दवाओं के लिए जरूरी कच्चा माल अन्य देशों से आयात किया जाता है, जिसकी कीमतों में इजाफा हुआ है।
- ऊर्जा और परिवहन लागत: दवा निर्माण में उपयोग होने वाली बिजली, ईंधन और परिवहन खर्च में बढ़ोतरी हुई है।
- पिछले वर्षों की वृद्धि: 2023 में भी NPPA ने 12% तक की वृद्धि की थी, जिससे पहले से ही महंगाई से जूझ रहे लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था।
किन दवाओं के दाम बढ़ेंगे?
राष्ट्रीय आवश्यक औषधि सूची (NLEM) में शामिल दवाओं के दाम बढ़ने वाले हैं। इनमें शामिल हैं:
- एंटीबायोटिक्स: संक्रमण से बचाव के लिए उपयोग की जाने वाली दवाएं।
- पेन किलर: दर्द निवारक दवाएं, जो आमतौर पर सर्दी-खांसी और चोटों में ली जाती हैं।
- हृदय रोग की दवाएं: ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने वाली दवाएं।
- डायबिटीज की दवाएं: ब्लड शुगर कंट्रोल करने वाली दवाएं।
- कैंसर की दवाएं: महंगे इलाज की दवाएं, जिनकी कीमत बढ़ने से मरीजों पर असर पड़ेगा।
मरीजों और आम जनता पर प्रभाव
इस फैसले से खासकर उन लोगों पर असर पड़ेगा जो नियमित रूप से दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। बुजुर्गों, क्रॉनिक बीमारियों से जूझ रहे मरीजों और गरीब तबके के लोगों पर यह बोझ और अधिक पड़ेगा।
संभावित प्रभाव:
- मासिक दवा खर्च में बढ़ोतरी: दवाओं के दाम बढ़ने से आम आदमी की जेब पर सीधा असर पड़ेगा।
- हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम में वृद्धि: बढ़ी हुई दवा लागत के कारण मेडिकल इंश्योरेंस कंपनियों पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे प्रीमियम दरों में भी इजाफा हो सकता है।
- बुजुर्गों के लिए समस्या: वरिष्ठ नागरिक, जो नियमित रूप से दवाओं का उपयोग करते हैं, उन्हें अधिक पैसे खर्च करने पड़ेंगे।
- गरीब वर्ग पर अधिक असर: निम्न आय वर्ग के लोग जो पहले से ही महंगाई से जूझ रहे हैं, उनके लिए जरूरी दवाएं खरीदना मुश्किल हो सकता है।
क्या सरकार कोई राहत देगी?
हालांकि सरकार ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई राहत योजना घोषित नहीं की है, लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ योजनाओं के तहत मरीजों को कुछ छूट मिल सकती है। प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के तहत सस्ती दरों पर दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, जिससे कुछ हद तक राहत मिलने की संभावना है।
जनऔषधि केंद्रों का लाभ:
- सरकारी जनऔषधि केंद्रों पर जेनेरिक दवाएं 50-90% तक सस्ती मिलती हैं।
- यह केंद्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयोगी हैं जो महंगी ब्रांडेड दवाएं नहीं खरीद सकते।
कैसे करें इस बढ़ोतरी का सामना?
अगर आप नियमित रूप से दवाओं का सेवन करते हैं, तो इन बढ़ी हुई कीमतों से निपटने के लिए कुछ उपाय कर सकते हैं:
- जनऔषधि केंद्रों से दवा खरीदें: यहाँ पर ब्रांडेड दवाओं की तुलना में काफी सस्ती दवाएं उपलब्ध होती हैं।
- थोक में खरीदारी करें: अगर संभव हो तो एक साथ 2-3 महीने की दवाएं खरीद लें, जिससे आपको पुरानी दरों पर दवा मिल सके।
- डॉक्टर से परामर्श लें: डॉक्टर से पूछें कि क्या कोई सस्ता विकल्प मौजूद है।
- हेल्थ इंश्योरेंस प्लान अपडेट करें: अगर आपके पास स्वास्थ्य बीमा है, तो उसमें दवा खर्च की कवरेज की जांच करें।
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