सारांश : मोदी सरकार 21 मार्च 2025 को लोकसभा में 'गिलोटिन' प्रक्रिया का इस्तेमाल करने जा रही है, जिससे बजट को तेज़ी से पारित किया जा सके। यह विधायी प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब सरकार को लगता है कि समय की कमी के कारण चर्चा की संभावना नहीं है। इससे पहले भी मोदी सरकार ने 2018-19 और 2020-21 में बिना बहस के बजट को मंजूरी दिलाने के लिए गिलोटिन का सहारा लिया था।
मोदी सरकार का गिलोटिन दांव: बजट पास कराने की रणनीति
मोदी सरकार 21 मार्च 2025 को लोकसभा में बजट पारित करने के लिए ‘गिलोटिन’ प्रक्रिया का उपयोग करने की तैयारी में है। यह प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब समय की कमी हो और सरकार चाहती है कि बजट को जल्द से जल्द मंजूरी मिले। यह कोई आम प्रक्रिया नहीं है, बल्कि तब लागू होती है जब संसदीय गतिरोध के कारण बहस की गुंजाइश समाप्त हो जाती है। इससे पहले भी मोदी सरकार ने 2018-19 और 2020-21 में गिलोटिन का सहारा लेकर बिना चर्चा के बजट पारित कराया था।
गिलोटिन प्रक्रिया क्या है?
गिलोटिन शब्द का ऐतिहासिक संदर्भ फ्रांसीसी क्रांति से जुड़ा है, जहां इसे मौत की सजा देने के लिए उपयोग किया जाता था। हालांकि, संसदीय परंपरा में इसका अर्थ अलग है। यहां गिलोटिन का मतलब एक विधायी प्रक्रिया से है, जिसमें सरकार बजट प्रस्तावों को बिना चर्चा के मंजूरी दिलाने के लिए एक साथ प्रस्तुत करती है।
आमतौर पर, बजट सत्र के दौरान मंत्रालयों की अनुदान मांगों पर विस्तार से चर्चा की जाती है। लेकिन जब समय कम होता है या विपक्ष विरोध में बाधा डालता है, तब सरकार गिलोटिन प्रक्रिया का उपयोग कर सीधे मतदान कराकर बजट को पारित करवा सकती है।
सरकार गिलोटिन का उपयोग क्यों कर रही है?
- समय की कमी: बजट सत्र का दूसरा चरण 10 मार्च 2025 को शुरू हुआ था और 4 अप्रैल को समाप्त हो रहा है। ऐसे में सरकार को बजट को समय पर पास कराना आवश्यक है।
- विपक्ष का विरोध: अगर विपक्ष हंगामा करता है और बहस में देरी होती है, तो सरकार गिलोटिन प्रक्रिया का उपयोग कर बजट को सुचारू रूप से पारित करवा सकती है।
- सरकारी कामकाज को जारी रखना: बजट पारित ना होने की स्थिति में सरकारी योजनाओं और मंत्रालयों के कार्यों में बाधा आ सकती है।
कैसे काम करती है गिलोटिन प्रक्रिया?
जब संसद में बजट प्रस्तुत किया जाता है, तो लोकसभा में विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान मांगों पर चर्चा की जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान वित्तीय आवंटन और बजटीय कटौतियों पर विचार किया जाता है।
लेकिन जब चर्चा पूरी नहीं हो पाती या समय की कमी होती है, तो लोकसभा अध्यक्ष गिलोटिन प्रक्रिया का सहारा लेते हैं। इसमें सभी लंबित अनुदान मांगों को बिना बहस के एक साथ मतदान के लिए प्रस्तुत किया जाता है। यह प्रक्रिया बजट को तेजी से मंजूरी देने में मदद करती है।
क्या विपक्ष इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ मानता है?
गिलोटिन का उपयोग अक्सर विवाद का कारण बनता है। विपक्ष इसे लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ बताते हुए कहता है कि इससे बहस और पारदर्शिता की गुंजाइश खत्म हो जाती है।
2020-21 में, जब दिल्ली हिंसा के चलते संसद में गतिरोध पैदा हुआ था, तब मोदी सरकार ने गिलोटिन का सहारा लेकर बजट पारित कराया था। इससे पहले, कांग्रेस सरकार ने 2004-05 और 2013-14 में भी इस प्रक्रिया का उपयोग किया था।
गिलोटिन के ऐतिहासिक उदाहरण
भारत में गिलोटिन का उपयोग कई बार किया गया है:
- 2018-19: मोदी सरकार ने बिना चर्चा के सभी अनुदान मांगों को पारित कराया था।
- 2020-21: दिल्ली हिंसा के कारण संसद में हंगामा होने के चलते बजट गिलोटिन प्रक्रिया के माध्यम से पास किया गया।
- 2004-05 और 2013-14: कांग्रेस सरकार ने भी संसदीय समय की कमी के चलते गिलोटिन का उपयोग किया था।
क्या यह सही कदम है?
गिलोटिन प्रक्रिया सरकार के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, क्योंकि इससे बजट को समय पर मंजूरी मिल जाती है। लेकिन यह लोकतांत्रिक परंपराओं को कमजोर कर सकती है, क्योंकि बहस और चर्चा के बिना महत्वपूर्ण वित्तीय निर्णय लिए जाते हैं।
सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि गिलोटिन प्रक्रिया का उपयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में किया जाए। संसद में सार्थक चर्चा के बिना बजट पारित करने से विपक्ष और जनता के बीच असंतोष बढ़ सकता है।
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