वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Election), जिसे हिंदी में एक राष्ट्र, एक चुनाव कहा जाता है, भारत में प्रस्तावित एक चुनावी सुधार है, जिसका उद्देश्य देशभर में लोकसभा, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों को एक साथ कराने की प्रणाली स्थापित करना है। वर्तमान में, भारत में चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे समय, संसाधन और धन की खपत बढ़ती है। वन नेशन वन इलेक्शन का उद्देश्य इन चुनावी प्रक्रियाओं को एक साथ आयोजित कराना है ताकि संसाधनों की बचत हो और चुनाव प्रक्रिया अधिक कारगर हो सके।
पृष्ठभूमि
वन नेशन वन इलेक्शन का विचार 1950 और 1960 के दशक में भारत में व्याप्त था, जब पहले चार लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे। परंतु 1967 के बाद, राजनीतिक और प्रशासनिक अस्थिरता के कारण यह प्रणाली टूट गई, और समय के साथ राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।
हाल के वर्षों में, इस विचार को फिर से चर्चा में लाया गया, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व में। बीजेपी के घोषणापत्र में भी इसे प्रमुख स्थान दिया गया है। मोदी सरकार ने 2020 में इसके अध्ययन के लिए एक समिति गठित की थी, जिसे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में "कोविंद समिति" के रूप में जाना जाता है।
उद्देश्य
वन नेशन वन इलेक्शन का मुख्य उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाना है। इसके तहत, देशभर के लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, और स्थानीय निकायों के चुनाव एक ही समय पर कराने का प्रावधान होगा। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- चुनावी खर्च में कमी: अलग-अलग समय पर चुनाव कराना एक महंगा और समय-साध्य प्रक्रिया है। ONOE से चुनावी खर्चों को कम किया जा सकता है।
- प्रशासनिक सुगमता: बार-बार चुनाव होने से प्रशासनिक तंत्र पर बोझ बढ़ता है। एक साथ चुनाव कराना प्रशासन को अधिक कुशलता से काम करने में मदद कर सकता है।
- सत्ता में स्थिरता: बार-बार चुनाव के कारण अक्सर राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न होती है। ONOE से सरकारों को अपने पूरे कार्यकाल के दौरान नीतिगत कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलेगा।
- चुनावों की आवृत्ति में कमी: बार-बार चुनाव होने से विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है। वन नेशन वन इलेक्शन से चुनावों की आवृत्ति घटेगी और विकास योजनाएं तेजी से लागू की जा सकेंगी।
चुनौतियाँ
वन नेशन वन इलेक्शन की योजना के कार्यान्वयन में कई संवैधानिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ हैं:
संविधान संशोधन: मौजूदा संविधान के तहत, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की अवधि अलग-अलग निर्धारित है। ONOE को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा, खासकर अनुच्छेद 83 (लोकसभा की अवधि) और अनुच्छेद 172 (राज्य विधानसभाओं की अवधि) में।
- राज्य विधानसभाओं की भंग करने की जटिलता: कई राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल लोकसभा चुनावों से अलग होते हैं। ONOE लागू करने के लिए कई विधानसभाओं को उनके कार्यकाल से पहले भंग करना पड़ेगा, जिससे राजनीतिक विवाद उत्पन्न हो सकता है।
- विविधता और लोकतंत्र पर प्रभाव: भारत के विविध राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवेश में एक साथ चुनाव कराना जटिल हो सकता है। राज्य और स्थानीय मुद्दों पर चुनावी चर्चा केंद्रित करने के लिए अलग-अलग चुनावों की आवश्यकता महसूस की जाती है।
- वित्तीय और तकनीकी चुनौतियाँ: एक साथ चुनाव कराने के लिए बड़ी संख्या में मतदान केंद्र, सुरक्षाकर्मियों और चुनाव अधिकारियों की आवश्यकता होगी, जो प्रशासनिक और वित्तीय दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
कोविंद समिति और सिफारिशें
रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति ने 2023 में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी। इस रिपोर्ट में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की सिफारिश की गई, और स्थानीय निकायों के चुनाव 100 दिनों के भीतर कराने का प्रस्ताव रखा गया।
कोविंद समिति ने यह भी सुझाव दिया कि वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने के लिए 18 संवैधानिक संशोधन आवश्यक होंगे, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी।
वर्तमान स्थिति
2029 तक वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करने की योजना है, जिसके लिए प्रक्रिया की शुरुआत 2024 से की जा सकती है। इसके तहत कई विधानसभाओं को उनके पांच साल के कार्यकाल की समाप्ति से पहले ही भंग करना पड़ेगा, जैसे कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों की विधानसभा को।