पुष्पक खास तरह का स्पेस शटल है. यह एक रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (Reusable Launch Vehicle) है, जो अंतरिक्ष में सैटेलाइट्स और कार्गो ले जाने का काम करेगा. आज के परीक्षण से पहले 2 अप्रैल 2023 को कर्नाटक के चित्रदुर्ग में ISRO, DRDO और भारतीय वायुसेना ने मिलकर टेस्ट किया. 

उस समय भी इसकी लैंडिंग कराई गई थी. चिनूक हेलिकॉप्टर से पुष्पक को 4.5 km की ऊंचाई से छोड़ा गया था. जिसके बाद यान ने खुद ही सफल लैंडिंग की. पुष्पक पूरी तरह से स्वदेशी है. कुछ साल में हमारे एस्ट्रोनॉट्स इसके बड़े वर्जन में कार्गो डालकर अंतरिक्ष तक पहुंचा सकते हैं. या फिर इससे सैटेलाइट लॉन्च कर सकते हैं.

यह सैटेलाइट को अंतरिक्ष में छोड़कर वापस आएगा. ताकि फिर से उड़ान भर सके. इतना ही नहीं इसके जरिए किसी भी देश के ऊपर जासूसी करवा सकते हैं. या हमला.  अंतरिक्ष में ही दुश्मन की सैटेलाइट को बर्बाद कर सकते हैं. ऐसी ही टेक्नोलॉजी का फायदा अमेरिका, रूस और चीन भी उठाना चाहते है


दुश्मन पर किसी तरह का हमला कर सकता है

यह एक ऑटोमेटेड रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल है. ऐसे विमानों से डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) चला सकते हैं. पुष्पक से बिजली ग्रिड उड़ाना या फिर कंप्यूटर सिस्टम को नष्ट करना जैसे काम भी किए जा सकते हैं. इसरो का मकसद है कि साल 2030 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा किया जाए. ताकि बार-बार रॉकेट बनाने का खर्च बचे


सैटेलाइट लॉन्च का खर्च 10 गुना कम हो जाएगा

इससे सैटेलाइट लॉन्च का खर्च 10 गुना कम हो जाएगी. थोड़ा मेंटेनेस के बाद इससे फिर लॉन्चिंग कर सकते हैं. सैटेलाइट लॉन्च किया जा सकता है. रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल के अत्याधुनिक और अगले वर्जन से भारतीय अंतरिक्षयात्रियों को स्पेस में भी भेजा जा सकता है. अभी ऐसे स्पेस शटल बनाने वालों में अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जापान ही हैं.


2016 का परीक्षण था मील का पत्थर

2016 में पुष्पक की टेस्ट फ्लाइट हुई थी. तब यह एक रॉकेट के ऊपर लगाकर अंतरिक्ष में छोड़ा गया था. करीब 65 km तक हाइपरसोनिक स्पीड से उड़ान भरी थी. उसके बाद 180 डिग्री पर घूमकर वापस गया था. 6.5 मीटर लंबे इस स्पेसक्राफ्ट का वजन 1.75 टन है. बाद में इसे बंगाल की खाड़ी में उतारा गया था. 


साइंस के साथ डिफेंस में भी मददगार है ये यान  

रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल दो स्टेज का स्पेसक्राफ्ट है. पहला रीयूजेबल पंख वाला क्राफ्ट जो ऑर्बिट में जाएगा. जिसके नीचे एक रॉकेट होगा जो इसे ऑर्बिट तक पहुंचाएगा. एक बार ऑर्बिट में पहुंचने के बाद स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में सैटेलाइट छोड़कर वापस जाएगा. इसका उपयोग रक्षा संबंधी कार्यों में भी किया जा सकता है.


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