सुप्रीम कोर्ट ने वोट के बदले नोट केस में सोमवार (4 मार्च) को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि संसद सदस्यों (सांसदों) और विधान सभा के सदस्यों (विधायकों) को विधायिका में भाषण देने या वोट देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में छूट नहीं दी जाएगी।

वोट के बदले नोट केस। सुप्रीम कोर्ट ने वोट के बदले नोट केस में सोमवार (4 मार्च) को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि संसद सदस्यों (सांसदों) और विधान सभा के सदस्यों (विधायकों) को विधायिका में भाषण देने या वोट देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में छूट नहीं दी जाएगी। इस तरह से सुप्रीम कोर्ट में सात न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से साल 1998 में पांच न्यायाधीशों की पीठ के पिछले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए 1998 के नरसिम्हा राव जजमेंट के अपने फैसले को पलट दिया। भारत के चीफ जस्टिस DY चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संवैधानिक पीठ ने सोमवार पांच जजों की पीठ के 1988 के फैसले की वैधता पर फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया था कि सांसदों और विधायकों को रिश्वत लेने के लिए मुकदमा चलाने से छूट दी गई थी।

JMM विधायक सीता सोरेन के मामले में मिली थी छूट

सांसदों को छूट का सवाल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की जांच के दायरे में तब आया, जब तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ जामा से झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) विधायक सीता सोरेन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।सीता सोरेन पर 2012 में राज्यसभा चुनाव में एक उम्मीदवार को वोट देने के लिए रिश्वत लेने का आरोप था।

उन्होंने अपने खिलाफ झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी और यह तर्क देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया कि उन्हें अभियोजन से छूट प्राप्त है। इससे पहले, उनके ससुर शिबू सोरेन को झामुमो रिश्वत घोटाले में आरोपी बनाए जाने पर विधायकों को छूट का लाभ मिला था।

शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 1998 में झामुमो रिश्वत मामले में फैसला सुनाया, जिसके द्वारा सांसदों और विधायकों को विधायिका में भाषण देने या वोट देने के लिए रिश्वत लेने के लिए अभियोजन से छूट दी गई थी।

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