सारांश: नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड मामले में 11 साल बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया है। आरोपियों में से 2 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है, जबकि 3 को बरी कर दिया गया है।
पुणे की विशेष सीबीआई कोर्ट ने नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड मामले में 11 साल बाद फैसला सुनाया है। दाभोलकर, एक समाजसेवी और महाराष्ट्र के अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के प्रमुख, को 20 अगस्त 2013 को पुणे में गोली मारकर हत्या किया गया था। मामले में कुल 5 आरोपी थे, जिनमें से 2 को दोषी करार दिया गया है, जबकि 3 को बरी कर दिया गया है।
आरोपी सचिन अंदुरे और शरद कलस्कर को दोषी करार दिया गया है और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। वहीं डॉक्टर विरेंद्र सिंह तावड़े, विक्रम भावे और संजीव पुनालकेर को बरी कर दिया गया है।
विरेंद्र तावड़े को मामले के मास्टरमाइंड माना जाता था, लेकिन अदालत ने उन्हें बरी कर दिया है। इसके बाद उन्हें सीबीआई द्वारा किये गए गिरफ्तारियों से रिहा कर दिया गया है।
दाभोलकर हत्याकांड के चारों आरोपियों को साझा किए गए अलग-अलग भूमिकाओं में देखा गया था। तावड़े उस समय वह "सनातन संस्था के सहयोगी संगठन हिंदू जन जागृति समिति के उप मुख्य आयोजक थे। उन्हें दाभोलकर के साथ उनका अंधविश्वास विरोधी अभियान को लेकर मतभेद था। अदालत ने उन्हें बरी कर दिया है, जिससे मामले में और भी गहराई आ सकती है।
किसको सजा और कौन हुआ बरी?
- सचिन अंदुरे - उम्रकैद
- शरद कलस्कर - उम्रकैद
- विरेंद्र सिंह तावड़े - बरी
- विक्रम भावे - बरी
- संजीव पुनालकेर - बरी
दाभोलकर हत्याकांड की गहन जांच के बाद, अदालत ने उम्रकैद की सजा देने का फैसला किया।
मामले की वजह:
मामले में दाभोलकर की हत्या के पीछे कई कारणों का सामना किया गया है। अभियोजन पक्ष के मुताबिक, दाभोलकर के मार्डर की मुख्य वजह महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति और सनातन संस्था के बीच का टकराव था। आरोपी डॉ तावड़े को मास्टरमाइंड माना गया है, जो कि सनातन संस्था के सहयोगी संगठन हिंदू जन जागृति समिति के उप मुख्य आयोजक थे।
आरोपी डॉ. तावड़े को मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसे पुणे पुलिस ने जांच शुरू करने के बाद किया गया था।
इसके अलावा, सीबीआई सूत्रों के मुताबिक, आरोपी तावड़े के द्वारा 22 जनवरी 2013 को अपनी बाइक से पुणे गए जाने के बाद ही दाभोलकर की हत्या की गई थी। उसे घटना के बाद भी उसी बाइक का इस्तेमाल करते रहने के आरोप लगाए गए थे। अदालत ने इन सब प्रमाणों को मध्यस्थता माना और उन्हें बरी कर दिया।
नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड मामले में कोर्ट के फैसले से यह साबित होता है कि इस मामले में न्याय की दिशा में कई तटस्थता के पहलू थे। मामले की गहराई और सच्चाई का पता लगाने के लिए न्यायिक प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।
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