सारांश : भारत में महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में हाल के वर्षों में जबरदस्त वृद्धि दर्ज की गई है। सरकारी योजनाओं जैसे मुद्रा ऋण, दीनदयाल अंत्योदय योजना और स्वयं सहायता समूहों ने ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई है। हालांकि, विभिन्न राज्यों और वैवाहिक स्थिति के आधार पर इस वृद्धि में काफी असमानता भी देखने को मिली है।
महिला श्रम बल भागीदारी दर में ऐतिहासिक सुधार
भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 2017-18 से 2022-23 तक उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में यह दर बढ़ी है, हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह उछाल अधिक स्पष्ट है। ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी 2017-18 में 24.6% थी, जो 2022-23 में बढ़कर 41.5% हो गई।
शहरी क्षेत्रों में, हालांकि वृद्धि अपेक्षाकृत कम रही है। वहां 2017-18 में यह दर 20.4% थी, जो 2022-23 में 25.4% तक पहुंची। यह अंतर न केवल क्षेत्रीय, बल्कि सामाजिक और आर्थिक कारकों के आधार पर भी मौजूद है।
सरकारी योजनाओं की प्रभावी भूमिका
महिलाओं की श्रम बल भागीदारी में वृद्धि के पीछे भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। मुद्रा ऋण, ड्रोन दीदी योजना और दीनदयाल अंत्योदय योजना जैसी पहलों ने ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्रदान किया है। इन योजनाओं के तहत स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) का गठन हुआ, जिसने महिलाओं को छोटे व्यवसाय शुरू करने और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में मदद की।
राज्यों में असमानता और विशेष बदलाव
महिलाओं की श्रम बल भागीदारी में वृद्धि का प्रभाव राज्यों और क्षेत्रों के आधार पर अलग-अलग रहा है। झारखंड में महिला LFPR में 233% की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि बिहार में यह आंकड़ा 500% तक पहुंच गया। नागालैंड जैसे राज्यों में यह दर 15.7% से 71.1% तक पहुंची, जो महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
दूसरी ओर, शहरी क्षेत्रों में वृद्धि की दर अपेक्षाकृत धीमी रही है। शहरी गुजरात में महिला LFPR में 63% की वृद्धि हुई, जबकि तमिलनाडु में यह 27.6% से बढ़कर 28.8% तक पहुंची। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में इस क्षेत्र में मामूली वृद्धि हुई है।
विवाह और श्रम बल में भागीदारी का संबंध
विवाह और श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी के बीच गहरा संबंध देखने को मिलता है। ग्रामीण क्षेत्रों में विवाहित महिलाएं अविवाहित महिलाओं की तुलना में अधिक कामकाजी हैं। राजस्थान और झारखंड जैसे राज्यों में यह प्रवृत्ति अधिक स्पष्ट है। हालांकि, शहरी क्षेत्रों में विवाह के बाद महिलाओं की LFPR में कमी देखी गई है।
इसके अलावा, छोटे बच्चों वाली महिलाओं के लिए कामकाजी जीवन और घरेलू जिम्मेदारियों को संतुलित करना कठिन हो जाता है। खासकर 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों की देखभाल महिलाओं के कामकाजी समय को सीमित कर देती है।
उम्र और श्रम बल में भागीदारी
रिपोर्ट के अनुसार, 30-40 वर्ष की उम्र की महिलाएं श्रम बल में सबसे अधिक सक्रिय रहती हैं। इसके बाद, उम्र बढ़ने के साथ उनकी भागीदारी घटने लगती है। पुरुषों के मामले में यह दर 30-50 वर्ष की उम्र तक उच्च बनी रहती है, जो बाद में धीरे-धीरे कम हो जाती है।
पूर्वोत्तर और दक्षिणी राज्यों का प्रदर्शन
पूर्वोत्तर राज्यों में ग्रामीण महिलाओं की श्रम बल भागीदारी में जबरदस्त सुधार हुआ है। नागालैंड जैसे राज्यों में इस वृद्धि ने राष्ट्रीय औसत को भी प्रभावित किया है। इसके विपरीत, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में शहरी महिला LFPR में गिरावट दर्ज की गई है। बच्चों की देखभाल और घरेलू जिम्मेदारियों के चलते शहरी महिलाओं ने नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया।
महिला सशक्तिकरण की ओर बढ़ते कदम
महिलाओं की श्रम बल भागीदारी में सुधार देश के समग्र आर्थिक विकास के लिए एक सकारात्मक संकेत है। यह न केवल महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है, बल्कि समाज में उनकी स्थिति को भी मजबूत करता है। हालांकि, इस सुधार को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए राज्यों के बीच असमानता को कम करना और महिलाओं के लिए अनुकूल कार्य परिस्थितियां सुनिश्चित करना आवश्यक है।
إرسال تعليق