सारांश: प्रधानमंत्री स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय (PMML) ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखे गए ऐतिहासिक और निजी पत्र लौटाने की अपील की है। PMML का दावा है कि 2008 में इन दस्तावेजों को सोनिया गांधी को सौंपा गया था, लेकिन वे अब तक वापस नहीं आए। पत्रों में नेहरू और अन्य प्रमुख हस्तियों के बीच संवाद शामिल है, जो भारतीय इतिहास की अमूल्य झलक प्रदान करते हैं।


नेहरू के ऐतिहासिक पत्र वापस करें: PMML की राहुल गांधी से अपील


नेहरू के पत्रों की वापसी पर विवाद

प्रधानमंत्री स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय (PMML) ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को एक औपचारिक पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वे जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखे गए ऐतिहासिक पत्र लौटाएं। यह अपील उस विवाद के बीच आई है जिसमें कहा गया है कि 2008 में सोनिया गांधी को इन दस्तावेजों को सौंपा गया था।


PMML के सदस्य रिजवान कादरी ने 10 दिसंबर को राहुल गांधी को पत्र लिखकर आग्रह किया कि इन दस्तावेजों को या तो मूल स्वरूप में वापस लौटाया जाए या फिर उनकी प्रतियां उपलब्ध कराई जाएं। इससे पहले, सितंबर 2024 में भी सोनिया गांधी से इसी विषय पर संपर्क किया गया था, लेकिन PMML को कोई जवाब नहीं मिला।


51 बक्सों में पैक किए गए थे दस्तावेज

बताया जाता है कि ये पत्र ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनमें न केवल नेहरू के विचारों और उनके समय की घटनाओं की झलक मिलती है, बल्कि यह भारत के इतिहास को बेहतर तरीके से समझने का स्रोत भी हो सकते हैं। इन पत्रों को 1971 में नेहरू मेमोरियल संग्रहालय को सौंपा गया था।


हालांकि, 2008 में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के समय, इन पत्रों को 51 बक्सों में पैक कर सोनिया गांधी को भेजा गया। PMML का दावा है कि ये पत्र अब तक संग्रहालय को वापस नहीं किए गए हैं।


महत्वपूर्ण हस्तियों के साथ संवाद

इन पत्रों में भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू और कई प्रमुख हस्तियों के बीच संवाद शामिल हैं। इनमें एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, जयप्रकाश नारायण, पद्मजा नायडू, विजया लक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, बाबू जगजीवन राम, और गोविंद बल्लभ पंत जैसे नाम शामिल हैं।


इस संवाद में न केवल राजनीतिक मुद्दों, बल्कि उस समय की सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों की झलक भी मिलती है। नेहरू और एडविना माउंटबेटन के बीच व्यक्तिगत पत्राचार को भी ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।


इतिहास के लिए अमूल्य धरोहर

PMML ने अपने पत्र में लिखा कि ये दस्तावेज भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण कालखंड के बारे में गहरी और अमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं। संग्रहालय ने कहा, "हम समझते हैं कि इन दस्तावेजों का नेहरू परिवार के लिए व्यक्तिगत महत्व हो सकता है। लेकिन इन्हें सार्वजनिक रूप से सुलभ कराना आवश्यक है ताकि विद्वान और शोधकर्ता इसका अध्ययन कर सकें।"


संग्रहालय ने जोर दिया कि इन दस्तावेजों की वापसी से न केवल भारतीय इतिहास को संरक्षित करने में मदद मिलेगी, बल्कि शोधकर्ताओं को भी नई जानकारियां मिलेंगी।


सोनिया गांधी की भूमिका पर सवाल

इस मामले में सोनिया गांधी की भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं। 2008 में, जब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी, इन दस्तावेजों को संग्रहालय से लेकर नेहरू परिवार को सौंपा गया। इसके बाद से ये दस्तावेज संग्रहालय को वापस नहीं लौटाए गए।


PMML ने सोनिया गांधी से बार-बार अनुरोध किया, लेकिन अब तक कोई ठोस जवाब नहीं मिला। संग्रहालय का मानना है कि यह मामला न केवल ऐतिहासिक महत्व का है, बल्कि इससे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के अध्ययन में बाधा उत्पन्न हो रही है।


नेहरू की विरासत पर बढ़ा विवाद

नेहरू परिवार और संग्रहालय के बीच इस विवाद ने जवाहरलाल नेहरू की ऐतिहासिक विरासत पर नई बहस छेड़ दी है। नेहरू के पत्र भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, भारतीय लोकतंत्र की नींव, और उनके वैश्विक दृष्टिकोण के बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं।


विशेषज्ञों का मानना है कि इन दस्तावेजों की वापसी से न केवल नेहरू की विरासत को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी, बल्कि यह वर्तमान पीढ़ी के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं।

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