दिल्ली शराब घोटाला (Delhi liquor scam)

दिल्ली शराब घोटाला (Delhi Liquor Scam) एक उच्च-प्रोफाइल भ्रष्टाचार मामला है जो 2021 में दिल्ली सरकार की नई शराब नीति से जुड़ा है। यह घोटाला तब सामने आया जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और अन्य विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने शराब ठेकों के आवंटन में भारी भ्रष्टाचार किया है।

दिल्ली शराब घोटाला (Delhi liquor scam)


पृष्ठभूमि

2021 में, दिल्ली सरकार ने नई शराब नीति पेश की थी जिसका उद्देश्य शराब व्यवसाय में पारदर्शिता लाना और राजस्व बढ़ाना था। इस नीति के तहत, शराब के ठेके निजी कंपनियों को आवंटित किए गए थे और सरकारी ठेकों को बंद कर दिया गया था। यह दावा किया गया था कि नई नीति से दिल्ली सरकार को अधिक राजस्व प्राप्त होगा और शराब की बिक्री में संगठित तरीके से बढ़ोतरी होगी।


आरोप और अनियमितताएँ

बीजेपी ने आरोप लगाया कि नई शराब नीति के तहत ठेके आवंटन में बड़े पैमाने पर अनियमितताएँ हुई हैं। विपक्ष का दावा था कि शराब ठेके हासिल करने के लिए नियमों की अनदेखी की गई और कुछ विशेष कंपनियों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया। यह भी आरोप लगाया गया कि ठेके आवंटन के लिए रिश्वत ली गई और इसके पीछे उच्च स्तर के राजनेताओं और अधिकारियों का हाथ है।


जांच और कानूनी कार्यवाही

जब घोटाले के आरोप सामने आए, तो केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मामले की जांच शुरू की। कई अधिकारियों और शराब व्यवसायियों से पूछताछ की गई और कई स्थानों पर छापेमारी भी की गई। दिल्ली सरकार के कुछ उच्च पदस्थ अधिकारियों को भी जांच के दायरे में लाया गया।


राजनीतिक प्रतिक्रिया

इस घोटाले ने दिल्ली की राजनीति में बड़ी हलचल मचा दी। बीजेपी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों पर गंभीर आरोप लगाए और उनके इस्तीफे की मांग की। आप सरकार ने इन आरोपों को राजनीतिक साजिश करार दिया और दावा किया कि बीजेपी उनके द्वारा किए गए विकास कार्यों को पटरी से उतारने की कोशिश कर रही है।


निष्कर्ष

दिल्ली शराब घोटाला एक जटिल और विवादास्पद मामला है जो राजनीतिक और कानूनी दोनों ही दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। जांच अभी भी जारी है और यह देखना बाकी है कि अंततः कौन जिम्मेदार ठहराया जाएगा और क्या कानूनी परिणाम सामने आते हैं। इस मामले ने न केवल दिल्ली की राजनीति में भूचाल ला दिया है, बल्कि देश भर में शराब नीति और सरकारी पारदर्शिता पर भी सवाल उठाए हैं।