एकलव्य महाभारत के प्रसिद्ध पात्रों में से एक हैं, जो अपनी अडिग निष्ठा और गुरु भक्ति के लिए जाने जाते हैं। वे निषाद जाति के प्रमुख हिरण्यधनु के पुत्र थे। एकलव्य ने धनुर्विद्या में अद्वितीय कौशल प्राप्त किया और भारतीय पौराणिक कथाओं में एक आदर्श शिष्य के रूप में माने जाते हैं।
परिचय
एकलव्य का उल्लेख महाभारत के आदि पर्व में मिलता है। वे एक निषाद (शिकारियों और वनवासियों का समूह) के राजकुमार थे। एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य को अपना गुरु मानकर धनुर्विद्या सीखने की इच्छा व्यक्त की थी। हालाँकि, द्रोणाचार्य ने सामाजिक व्यवस्थाओं के कारण उन्हें शिष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया।
धनुर्विद्या और गुरु भक्ति
गुरु द्वारा अस्वीकृति के बावजूद, एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उन्हें गुरु मान लिया और उनके प्रति अपार श्रद्धा के साथ स्वयं धनुर्विद्या का अभ्यास करना प्रारंभ किया। उनकी मेहनत और समर्पण के फलस्वरूप वे महान धनुर्धर बने।
अंगूठे का दान
महाभारत की कथा के अनुसार, जब द्रोणाचार्य को पता चला कि एकलव्य ने उनकी प्रतिमा के माध्यम से धनुर्विद्या प्राप्त कर ली है और वह अर्जुन से भी श्रेष्ठ धनुर्धर बन गया है, तो उन्होंने एकलव्य से गुरु दक्षिणा के रूप में उनका अंगूठा मांग लिया। एकलव्य ने बिना किसी संकोच के अपना अंगूठा काटकर द्रोणाचार्य को भेंट कर दिया। यह घटना उनकी गुरु भक्ति और त्याग का प्रतीक बन गई।
सांस्कृतिक महत्व
एकलव्य की कहानी भारतीय साहित्य और समाज में त्याग, गुरु भक्ति और समर्पण का प्रतीक मानी जाती है। वे यह दर्शाते हैं कि कड़ी मेहनत और दृढ़ निश्चय से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
आधुनिक दृष्टिकोण
आधुनिक समय में एकलव्य की कहानी पर विभिन्न दृष्टिकोण सामने आए हैं। कुछ लोग इसे सामाजिक भेदभाव और अधिकारों के हनन का प्रतीक मानते हैं। उनकी कहानी ने साहित्य, कला और सामाजिक विमर्श में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है।
संदर्भ
महाभारत, आदि पर्व
भारतीय पौराणिक ग्रंथ
आधुनिक साहित्य और सांस्कृतिक विश्लेषण